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कविता की जीवनी

ए अरविंदाक्षन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :108
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 17130
आईएसबीएन :9789362870582

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"**अरविन्दाक्षन की कविताएँ : मानव उद्विग्नताओं और ऐतिहासिक गूंज की यात्रा**"

अपने प्रदेश को, अपने आसपास को सुरक्षित रखने के बावजूद ए. अरविन्दाक्षन की कविताएँ लम्बी दूरी तय करके यात्रा करती प्रतीत होती हैं। उद्विग्नताओं को, चाहे वह जिस किसी की हो या जहाँ कहीं की हो उनके लिए वे मनुष्य की उद्विग्नताएँ हैं। उन्हें अनसुना नहीं किया जा सकता। अरविन्दाक्षन उन सारी बातों को शब्दित करना चाहते हैं जो जड़ संस्कृति के पर्याय हैं। मनुष्य विरोधी उन्मुखताओं के प्रति कवि अशान्त हो जाते हैं। यह अशान्ति उनकी बहुत सारी कविताओं में दर्ज है।

‘भाषा का मौन

ख़तरे को सूचित करता है।

कलिगुलाओं के डर से

भाषा यदि मौन साध रही है

तो उसका अर्थ है

भाषा मर रही है।’

अरविन्दाक्षन की कविताओं में इतिहास अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहता है। वर्तमानता का अतीत और अतीत की वर्तमानता के बीच की आवाजाही उनकी कविताओं में होती रहती है। अतः उनका इतिहास बोध सशक्त है।

विजित होना

हमेशा विजित होते रहना

जीत नहीं है

दरअसल वह हार है।

हारते रहना

हमेशा हारते रहना

हारना नहीं

दरअसल वह जीत है।’

इस कवि की कविताएँ उस तीर्थ की खोज करती रहती हैं जहाँ से वे मनुष्यता का जलकण लाना और वितरित करना चाहती हैं। यही उनकी समय के साथ की सहवर्तित है।

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